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Showing posts from August, 2019

बनारसी

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बनारस का नाम सुनते ही सबसे पहले मन मे क्या आता है?घाट या फिर धार्मिक स्थल या फिर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय यही तीन आते होंगे जहाँ तक मुझे लगता है।बनारस को विश्वव का प्राचीनतम शहर माना जाता है।बनारस को समय-समय पे नए नाम तो मिलते गए लेकिन वो अपना पुराना मिज़ाज नही बदल पाया।आज भी जब मैं बनारस जाता हूँ तो मुझे उसमे कोई शहर नही बल्कि एक गाँव नजर आता है।एक ऐसा गाँव जहाँ आज भी मानवीय मूल्यों की ईज्जत की जाती है और एक ऐसा शहर जो अपने धार्मिक मान्यताओं के चलते पूरे विश्वव में हिन्दू धर्म का आज भी प्रतिनिधित्व करता चला आ रहा है।घाटों के बारे में सब कुछ लिख के बताया ही नही जा सकता।बस इतना समझ लीजिए कि अगर मजनू बनारस का होता तो एक बार लैला के बिना जीवन की कल्पना कर सकता था लेकिन बनारसी घाटों के बिना नही।बनारसी पान तो शायद आप सब जानते ही होंगे।मुझे याद है जब मैं पहली बार बनारस जा रहा था तो पूरे रास्ते मे मैंने सात बार पापा से पूछा था की "पानवा कहाँ मिली?"(पान कहाँ मिलेगा?)।खैर कोई बात नही फिर वापस घाट पे आते है। मैं जब पिछली बार गया था तो बनारस कुछ बदला-बदला सा लग रहा था।सड़के तो प

College वाला लड़का!

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कब गाँव के स्कूल में पढ़ने वाला लड़का शहर आ कर कॉलेज वाला बन गया पता ही नही चला।कब अपने आप को गाँव का सरताज समझने वाला लड़का कॉलेज में सीनियर और जूनियर के बीच के अंतर को समझने लगा पता ही नही चला। स्कूल की ज़िंदगी अब उबाऊ लगने लगी थी।दिन तो बस इसी ख्याल में बीत रहे थे कि अब ज़िन्दगी में मौज होने वाला है।अब कुछ दिनों बाद मैं भी कॉलेज में पढ़ने वाला हो जाऊँगा।ये टीचर्स की डाँट और नोट्स कम्पलीट करने की झंझट सब बीते दिनों की बात होगी।वहाँ नए दोस्त होंगे।नया शहर होगा।सब अच्छा होगा। लेकिन उसे क्या पता था कि यहाँ तुम आराम से साँस तक नही ले पाओगे।यहाँ तुम क्या पहनोगे ये भी तुम्हारा सीनियर ही तय करेगा।तुम कहाँ जाओगे,क्या करोगे,कितने बजे आओगे सब कुछ वो ही तय करेंगे।रात को कब कोई बुलाने आ जाये और तुम्हे उस समय जाना ही जाना है ये सारी बाते उसे कहाँ मालूम थी।वो तो बस अब ज़िन्दगी में मज़े लेने के लिए उत्सुक था।उसे क्या पता था कि जिस स्कूल को वो एक जेल समझ रहा है वो तो बस उसकी नासमझी का एक प्रमाण है।ये सारी बाते तो उसे अब पता चली की मेरा स्कूल,मेरा अपना शहर कितना अच्छा था।उसको भईया बोलना अपनापन लगता