College वाला लड़का!
कब गाँव के स्कूल में पढ़ने वाला लड़का शहर आ कर कॉलेज वाला बन गया पता ही नही चला।कब अपने आप को गाँव का सरताज समझने वाला लड़का कॉलेज में सीनियर और जूनियर के बीच के अंतर को समझने लगा पता ही नही चला।
स्कूल की ज़िंदगी अब उबाऊ लगने लगी थी।दिन तो बस इसी ख्याल में बीत रहे थे कि अब ज़िन्दगी में मौज होने वाला है।अब कुछ दिनों बाद मैं भी कॉलेज में पढ़ने वाला हो जाऊँगा।ये टीचर्स की डाँट और नोट्स कम्पलीट करने की झंझट सब बीते दिनों की बात होगी।वहाँ नए दोस्त होंगे।नया शहर होगा।सब अच्छा होगा।
लेकिन उसे क्या पता था कि यहाँ तुम आराम से साँस तक नही ले पाओगे।यहाँ तुम क्या पहनोगे ये भी तुम्हारा सीनियर ही तय करेगा।तुम कहाँ जाओगे,क्या करोगे,कितने बजे आओगे सब कुछ वो ही तय करेंगे।रात को कब कोई बुलाने आ जाये और तुम्हे उस समय जाना ही जाना है ये सारी बाते उसे कहाँ मालूम थी।वो तो बस अब ज़िन्दगी में मज़े लेने के लिए उत्सुक था।उसे क्या पता था कि जिस स्कूल को वो एक जेल समझ रहा है वो तो बस उसकी नासमझी का एक प्रमाण है।ये सारी बाते तो उसे अब पता चली की मेरा स्कूल,मेरा अपना शहर कितना अच्छा था।उसको भईया बोलना अपनापन लगता है लेकिन फिर भी इंग्लिश में सर बोले जा रहा है।उसका मन तो करता है कि आज ही वो अपने शहर वापस चला जाये लेकिन फिर वो ये सोच के रूक जाता है कि बस कुछ दिनों बाद सब अच्छा होगा,फिर पढ़ाई के बाद उसे एक अच्छी नौकरी भी तो करनी है,इसी आशा के साथ वो अब भी इन सारी चीजों के बीच संतुलन बनाने के प्रयत्न में लगा हुआ है।
स्कूल की ज़िंदगी अब उबाऊ लगने लगी थी।दिन तो बस इसी ख्याल में बीत रहे थे कि अब ज़िन्दगी में मौज होने वाला है।अब कुछ दिनों बाद मैं भी कॉलेज में पढ़ने वाला हो जाऊँगा।ये टीचर्स की डाँट और नोट्स कम्पलीट करने की झंझट सब बीते दिनों की बात होगी।वहाँ नए दोस्त होंगे।नया शहर होगा।सब अच्छा होगा।
लेकिन उसे क्या पता था कि यहाँ तुम आराम से साँस तक नही ले पाओगे।यहाँ तुम क्या पहनोगे ये भी तुम्हारा सीनियर ही तय करेगा।तुम कहाँ जाओगे,क्या करोगे,कितने बजे आओगे सब कुछ वो ही तय करेंगे।रात को कब कोई बुलाने आ जाये और तुम्हे उस समय जाना ही जाना है ये सारी बाते उसे कहाँ मालूम थी।वो तो बस अब ज़िन्दगी में मज़े लेने के लिए उत्सुक था।उसे क्या पता था कि जिस स्कूल को वो एक जेल समझ रहा है वो तो बस उसकी नासमझी का एक प्रमाण है।ये सारी बाते तो उसे अब पता चली की मेरा स्कूल,मेरा अपना शहर कितना अच्छा था।उसको भईया बोलना अपनापन लगता है लेकिन फिर भी इंग्लिश में सर बोले जा रहा है।उसका मन तो करता है कि आज ही वो अपने शहर वापस चला जाये लेकिन फिर वो ये सोच के रूक जाता है कि बस कुछ दिनों बाद सब अच्छा होगा,फिर पढ़ाई के बाद उसे एक अच्छी नौकरी भी तो करनी है,इसी आशा के साथ वो अब भी इन सारी चीजों के बीच संतुलन बनाने के प्रयत्न में लगा हुआ है।
-Mohit kumar singh
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