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Showing posts from January, 2020

दिखावा

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आज मैं शहर के सबसे महँगे होटल में खाने गया था ये तो ठीक है लेकिन खाना रखे प्लेटो का फ़ोटो अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स पे शेयर कर के मैं क्या दिखाना चाहता हूँ!अपनी अवकात.... हाँ मुझे तो यही लगता है।मैंने भी कई बार ऐसा किया है लेकिन अधिकत्तर समय मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि ऐसा ना करू।इसके बावजूद भी कई बार ये काम ना चाहते हुए करना पड़ता है।मानो ऐसा लगता है जैसे जब तक मेरे दोस्त,रिश्तेदार या फिर कोई और करीबी इसे नही देख लेगा तब तक खाना पचेगा ही नही।मैंने किसी किताब में पढ़ा था जिसमे लेखक कटाक्ष करते हुए कहता है कि 'लोग आज-कल फ़ोटो खिंचाने भी जाते है तो इत्र लगा कर जाते है मानो फ़ोटो में खुशबू आ जायेगी'। अभी मैंने कुछ दिन पहले किसी संस्था द्वारा किया गया एक सर्वे पढ़ा था जिसमे लिखा था कि अधिकत्तर भारतीय घूमने की चाहत से दूसरे जगह पे नही जाते बल्कि ये इसे अपने सामाजिक स्टेट्स को बढाने का तरीका समझते है।हो सकता है की आप इस अधिकत्तर की श्रेणी में ना आते हो लेकिन वो लोग भी तो आपके आस-पास ही मौजूद है जो इस श्रेणी में आते है। मेरा मतलब केवल इतना है कि हम दिखावे की संस्कृति को कब तक ढोते रहे

धोनी...माही....

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धोनी...महेंद्र सिंह धोनी...नाम सुन के क्रिकेट प्रेमियों के दिलो की धड़कनें तेज हो जाती है।धोनी उस हीरे का नाम है जिसने टीम इंडिया को क्रिकेट जगत के सिरमौर के रूप में स्थापित किया।1983 के बाद जब वर्ल्ड कप जितने की उम्मीद समय के साथ धुँधली होती जा रही थी तब टीम इंडिया को वर्ल्ड चैंपियन बनाने वाला है धोनी।अपने कप्तानी में टीम इंडिया को क्रिकेट जगत के हर प्रारूप का बाहुबली बनाने वाला है धोनी।मैच जितने की उम्मीद है धोनी।हार के मुँह से निकाल कर टीम को जीत दिलाने वाला सुपरमैन है धोनी। अब हर जगह यही चर्चा है कि धोनी बहुत जल्द अंतराष्ट्रीय क्रिकेट के हर प्रारूप से सन्यास लेने वाला है।सालों बाद पहली बार टीम इंडिया ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एकदिवसीय मैच खेलने मैदान पे धोनी के बिना उतरेगी।शायद अब धोनी सीधे आईपीएल में ही मैदान पे दिखे।दिल की बात बोलू तो धोनी को कप्तान के रूप में देखने की आदत बन गयी थी।ऐसा नही है कि विराट अच्छा नही खेलता या फिर वो पसंद नही लेकिन दिल कप्तान के रूप में धोनी को छोड़ के किसी और को देखने के लिए तैयार ही नही होता।विराट को देख के दिल कभी वो जुड़ाव ही महसूस नही करता जो धोनी के

प्रधान जी

कहानी पूर्वी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव से होकर गुजरती है।उसी छोटे से गाँव के रहने वाले थे प्रधान जी।अरे नही-नही प्रधान जी उनका नाम नही था बल्कि उनका पद था।आमतौर पे हमारे पूर्वांचल के गाँव मे बसने वाले लोग एक-दूसरे को उनके नाम से नही बल्कि उनके काम से जानते है और इसी के कारण कोई सिपाही जी तो कोई मास्टर साहब तो कोई जीवन भर प्रधान जी बन जाता है।प्रधान जी की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है।हमारे प्रधान जी बचपन से ही नेता बनने का शौक रखते थे।ऐसा नही है कि केवल शौक रखते थे बल्कि छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रिय भी थे।ज्ञान का तो पूछिये मत किसी विषय पे बोलना शुरू कर देते थे तो बड़े-बड़े वक्ता भी उनके सामने पानी भरते नज़र आते थे।डरना तो जैसे उन्होंने कभी सीखा ही नही।छात्र जीवन में ही इलाके के अच्छे-अच्छे बदमाशों से चार-चार हाथ कर चुके थे और अब तो इलाके भर के बदमाश भी उन्हें प्रधान जी कहकर संबोधित करते थे।गाँव मे प्रधान जी के पास अच्छी-खासी खेती थी औऱ फिलहाल यही उनके रोजमर्रा के खर्चो को चलाने वाला एकमात्र साधन भी था। प्रधान जी घर-गृहस्थी वाले व्यक्ति थे।दो बेटों औऱ एक बेटी के साथ-साथ  उनकी पत्

बिहार चुनाव और अनंत सिंह!

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बिहार में फिर बहार आने वाला है।मेरा मतलब चुनाव आने वाला है और इसी बहार में हर बार की भाँति बिहार का बहुत ही चर्चित चेहरा रहने वाला है अनंत सिंह।अब बाहुबली बनना आसान है लेकिन इसके दम पे विधायक या फिर सांसद बन जाना ये मुझे थोड़ा अटपटा लगता है।आप खुद सोचिये कोई गुंडा 1 या 2 गाँव को डरा सकता है लेकिन पूरे विधानसभा को या फिर लोकसभा को डरा के वोट लेना इतना आसान नही है वो भी आज के दौर में।मेरे कहने का मतलब है कि उसमें कुछ अच्छाई और बुराई दोनों होती है जो उसे दुनिया की नजर में बाहुबली तो अपने क्षेत्र में जनता का प्रिय बनाती है। मैं आज बाहुबली विधायक अनंत सिंह की बात करूँगा।एक दिन मैं लल्लनटॉप के यूट्यूब चैनल पे अपलोड एक वीडियो देख रहा था उसमें बाढ़ इलाके के किसी गाँव मे लोगों से बात कर रहे थे लल्लनटॉप वाले द्विवेदी जी।आपको बताते चले कि अनंत सिंह बिहार में छोटे सरकार के नाम से भी जाने जाते है।लोग कह रहे थे कि छोटे सरकार के यहाँ चाहे आप किसी भी समस्या के निवारण के लिए जाए वहाँ से खाली हाथ नही लौटना पड़ता।उनको जो भी कहना होता है मुँह पे बोल देते है कि काम होगा या नही।जनता को दौड़ा के परेशान करने