दिखावा
आज मैं शहर के सबसे महँगे होटल में खाने गया था ये तो ठीक है लेकिन खाना रखे प्लेटो का फ़ोटो अपने सोशल मीडिया एकाउंट्स पे शेयर कर के मैं क्या दिखाना चाहता हूँ!अपनी अवकात.... हाँ मुझे तो यही लगता है।मैंने भी कई बार ऐसा किया है लेकिन अधिकत्तर समय मैं पूरी कोशिश करता हूँ कि ऐसा ना करू।इसके बावजूद भी कई बार ये काम ना चाहते हुए करना पड़ता है।मानो ऐसा लगता है जैसे जब तक मेरे दोस्त,रिश्तेदार या फिर कोई और करीबी इसे नही देख लेगा तब तक खाना पचेगा ही नही।मैंने किसी किताब में पढ़ा था जिसमे लेखक कटाक्ष करते हुए कहता है कि 'लोग आज-कल फ़ोटो खिंचाने भी जाते है तो इत्र लगा कर जाते है मानो फ़ोटो में खुशबू आ जायेगी'। अभी मैंने कुछ दिन पहले किसी संस्था द्वारा किया गया एक सर्वे पढ़ा था जिसमे लिखा था कि अधिकत्तर भारतीय घूमने की चाहत से दूसरे जगह पे नही जाते बल्कि ये इसे अपने सामाजिक स्टेट्स को बढाने का तरीका समझते है।हो सकता है की आप इस अधिकत्तर की श्रेणी में ना आते हो लेकिन वो लोग भी तो आपके आस-पास ही मौजूद है जो इस श्रेणी में आते है। मेरा मतलब केवल इतना है कि हम दिखावे की संस्कृति को कब तक ढोते रहे...