108 और 102 Ambulance कर्मचारियों को कौन प्रताड़ित कर रहा है और सरकार क्यों चुप है?

सर ऐसा है एक कृपा कीजिए। आप एक आदेश पारित कर दीजिए जिसमे कहा गया हो कि राज्य के नागरिकों की कोई भी जिम्मेदारी सरकार नहीं लेगी। इससे आपके आत्म निर्भर वाले योजना को बल भी मिलेगा और आम जनता खुद रास्ता ढूंढेंगी की कैसे उसे अपनी जिंदगी जीनी है। 




यह सब लिखने के लिए हम मजबूर हैं क्योंकि हमारे व्हाट्सएप पर पिछले कई दिनों से लगातार एक फोटो भेजा जा रहा है और बताया जा रहा है कि फोटो में जो व्यक्ति दिख रहा है उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है।

पूरा मामला राज्य के 102 और 108 एंबुलेंस सेवा से जुड़ा हुआ है और सबसे जरूरी यह है कि हमने खुद इसके पहले भी इससे जुड़े कर्मचारियों को लेकर कई वीडियो बनाया है। जब लखनऊ में इनका प्रदर्शन चल रहा था तब भी हमने आवाज उठाया था और आज जब सरकार के ठेकेदारी प्रथा में फंस कर कोई व्यक्ति फांसी लगाकर अपनी जान देता है तब भी हम आवाज उठा रहे हैं। हमको चिल्लाने का कोई पैसा नहीं दे रहा है, हम सिर्फ इसलिए चिल्ला रहे हैं क्योंकि सरकार यह सब कुछ देख कर अपना मुंह बंद कर चुकी है और अब अगर हम भी चुप हो जाएंगे तो फिर उनकी बातों को कौन सुनेगा? सरकारी अधिकारियों और सरकार में बैठे मंत्रियों के लिए यह कहना बड़ा आसान है की सब कुछ ठीक चल रहा है लेकिन उन्हें इस बात का अंदाजा तक नहीं होता कि खुद मेहनत करके अपनी पगार के लिए इन कर्मचारियों को कितनी मशक्कत करनी पड़ती है।


हर छोटी-मोटी बात के लिए सोशल मीडिया की देख-रेख करने वाले सरकारी अधिकारियों को ना जाने यह क्यों नहीं दिखता की इसी फेसबुक और ट्विटर के माध्यम से एंबुलेंस चलाने वाले कर्मचारी लगातार अपनी मांग रख रहे हैं और बदले में उन्हें सरकार की तरफ से आश्वासन भी नहीं दिया जा रहा है।
अगर लखनऊ में कर्मचारी अपनी मांग को लेकर प्रदर्शन करेंगे तो उनके नेता को ही कई दिनों तक गायब कर दिया जाएगा। सर हंसी आता है की किसी को प्रदर्शन करने की भी छूट नहीं है और वह भी उस सरकार के राज में जो लोकतांत्रिक तरीके से चुनकर गई है। अरे साहब अगर अफगानिस्तान में बम फटेगा तो हमको उससे क्या करना है। जो 10 हजार रुपया महीना में अपना पूरा परिवार चला रहा है उसको अफगानिस्तान में तालिबान ने क्या कर दिया है इस चीज से कोई मतलब नहीं है, उसको मतलब सिर्फ इस चीज से है कि उसकी नौकरी सही सलामत रहे। उसे समय से पैसे मिले क्योंकि उसी पैसे से बच्चों की पढ़ाई और अपनी दवाई का खर्चा उठाना है। जिसके पास खाने के लिए खाना नहीं है उसे राजनीति से क्या ही लेना देना है?

यहां क्लिक कर वीडियो देखें- 


हमने जिस युवक के फांसी लगाने की बात की है उसके बारे में बताया जा रहा है कि सिर्फ कंपनी के बड़े अधिकारियों के प्रताड़ना से परेशान होकर उस युवक ने यह कदम उठाया है और ऐसा नहीं है कि इस प्रकार का कोई पहला मामला सामने आया है। निजी कंपनियों के हाथ में सरकारी व्यवस्था देंगे तो कर्मचारियों को यह सब कुछ झेलना पड़ेगा। लखनऊ में बैठे साहब लोग अगर इमानदारी से इस बात की तहकीकात करेंगे तो उन्हें पता चल जाएगा कि कंपनी द्वारा अपने कर्मचारियों को कितना समय से तनख्वाह दिया जाता है। उन्हें पता चल जाएगा कि किस प्रकार से कर्मचारियों की तनख्वाह में बिना किसी सूचना के कटौती कर दी जाती है। सरकार में बैठे मंत्री सच में बताएं कि इस प्रकार से जितने भी कर्मचारी अपनी जान देते हैं उनमें से कितनों को इंसाफ मिल पाता है?
कुछ दिन पहले जब एंबुलेंस चलाने वाले कर्मचारियों के द्वारा प्रदर्शन किया जा रहा था तब सरकार उन्हें नौकरी से निकालने का फरमान सुना रही थी। उनके नेता को कई दिनों तक नजरबंद करके रखा गया। यह सच्चाई है कि कानून सबके लिए बराबर बनाया गया है लेकिन वह सबके लिए बराबर रूप से काम नहीं कर पाता है। आपसे सिर्फ एक अपील करेंगे कि इन्हें लखनऊ में कोई बड़ा सा मंत्री पद नहीं चाहिए, इन कर्मचारियों को सिर्फ अपनी जिंदगी अच्छे ढंग से चलानी है और इसीलिए यह संघर्ष कर रहे हैं। एक बार हमारे मंत्री जी लोग सोचें कि किसी को 10 हजार-12 हजार रुपया तनख्वाह दिया जाए और उसका भी कोई ठिकाना ना हो तो उसका परिवार कैसे चलेगा? आज प्राइवेट कंपनियों के चक्कर में लाखों कर्मचारी पीस रहे हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है और सबसे आखरी में वे मानसिक रूप से इतना थक जाते हैं कि उन्हें अपना जान देना आसान लगने लगता है। साहब ठेका प्रथा कितने परिवारों को उजाड़ रहा है इसका शायद आपको ठीक-ठीक अंदाजा भी नहीं है।
एक बार जाइएगा उस परिवार के पास जिसके घर का कोई लड़का कोरोना के समय संक्रमित लाशों को ढोते-ढोते खुद संक्रमित होकर मारा गया हो और उसके बदले में उसे सरकार की तरफ से कोई मदद भी ना मिली हो क्योंकि वह तो कोरोना वारियर्स की सूची में भी नहीं आता। बाकी सरकार के मुखिया अगर खुद से इन कर्मचारियों के बारे में सोचेंगे तो हमें उम्मीद है कि कुछ अच्छा परिणाम निकलेगा और हम तो समय-समय पर आवाज उठाते रहेंगे। ज्यादा से ज्यादा शेयर कीजिए। आपकी आवाज को हम उठाते रहेंगे, यह वादा है। बहुत-बहुत धन्यवाद।

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