गाँव से ही बनेगा भारत आत्मनिर्भर

अब शहर से गाँव की तरफ चल ही दिए है तो अपने मन में ये ठान लीजिए कि जो सेठ लोग शहर में बड़ी-बड़ी फैक्टरियों के मालिक बन कर बैठे है उनको गाँव मे निवेश के लिए मजबूर करना है।हमे पता है कि ये काम इतना आसान नही है लेकिन नामुमकिन भी नही है।किसी भी फैक्ट्री को चलाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है सस्ता लेबर का औऱ जब आप वापस से बड़े शहरों का रुख नही करेंगे तो गाँव के बारे में सोचना उनकी मजबूरी हो जाएगी।आपका काम गाँव में मेहनत करने से भी चल जाएगा।भले आधुनिक उपभोग की वस्तुओं के खरीदने भर की कमाई ना हो लेकिन आप भूखे भी नही मरेंगे।आज भी आप शहर से बस इसी लिए तो भाग रहे है क्यो की आपको पता है चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन गाँव आपको भुखमरी से बचा लेगा।आज गाँव मे 'हल्दीराम' और 'बिकानो' कि नमकीन मिल रही है लेकिन जब हम छोटे थे तब 'राजा' और 'अनमोल' जैसे लोकल ब्रांड्स की नमकीन खाते थे।ये जो 'राजा' और 'अनमोल' के नमकीन थे,ये गाँव के आत्मनिर्भर होने की कहानी कहते थे क्योकि इनकी पैकिंग से लेकर बनाने तक का काम लोकल बाजार में होता था और जब लोकल मार्केट में कोई उद्योग लगा है तो निश्चित रूप से उसमे काम करने वाले लोग भी उसी बाजार या आस-पास के गाँव से होते थे।आप पिछले कुछ सालों में देखेंगे कि ये राजा और अनमोल के जगह पर 'टकाटक','कुरकुरे' और 'बिकानो' की आलू भुजिया से गाँव की दुकानें भर गई है।लोकल ब्रांड्स के पास उतने पैसे नही थे कि विज्ञापन के चकाचौंध से भरी इस दुनिया मे किसी बड़े ब्रांड्स का सामना कर पाए और अंत मे ये सब बंद हो गए।हमे मिल कर प्रयास करना होगा कि किसी भी तरह से गाँव के बाजारों में ये लोकल उत्पाद फिर से आये क्यो की यही रास्ता है गाँव औऱ छोटे शहर को फ़िर से आत्मनिर्भर बनाने का।
शहर की चकाचौंध सबको पसन्द आती है लेकिन ये जो तीन मंजिला मकान आप देखते है उसके ऊपर बैंक का 20 लाख लोन भी है ये बात आप नही जानते।ऐसा नही है कि शहर में रहने वाले सभी करोड़पति और गाँव मे रहने वाले सब लोग गरीब ही है लेकिन दिखावा की जो आदत है वो शहर वालो की गाँव वालों से बेहतर है बस यही चीज़ गाँव वालों को शहर के तरफ सबसे ज़्यादा आकर्षित करती है।हमे दूर से देख के लगता है कि शहर की ज़िंदगी काफी आसान औऱ बेहतर है लेकिन वो कहावत तो आपने सुना ही होगा कि "दूर के ढ़ोल सुहाने लगते है"।गाँव आज भी अपने पूरे जनमानस का पेट पालने की क्षमता रखता है बशर्ते हमें गाँव को भी पहले वाला बनाना होगा।हमे उद्योगों को गाँव मे आने के लिए मजबूर करना है और इसके लिए सबसे पहले हमें गाँव के सीमित संसाधन में जीवन जीने की शैली अपनानी होगी।हमे इंटरनेशनल ब्रांड्स के कपड़े को छोड़ कर लोकल बाजार में बनने वाले कपड़े को पहनना होगा।शायद इस पलायन के बाद आप गाँव के आत्मनिर्भर होने की ज़रूरत भी समझ गए होंगे औऱ आज देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान भी गाँव मे किसी ज़रूरत की चीज का कमी का ना होना देख कर गाँव की क्षमता भी समझ गए होंगे।कई सारे ऐसे गाँव है जो सेनेटाइजर और मास्क का निर्यात शहर में कर रहे है और हम बस यही चाहते है कि सप्लाई की जो ये चेन आज गाँव से शहर की तरफ है ये बरकरार रहनी चाहिए।सब्जी औऱ अनाज के लिए तो गाँव पहले से ही शहरो के लिए भगवान बने हुए है।हमारे लिए 'वोकल फ़ॉर लोकल' का मतलब यही होना चाहिए कि जो चीज़ गाँव या पास के लोकल बाजार में तैयार हो रहे हो हम सब उन चीजों को प्राथमिकता दे।अब धान की बुवाई का समय आ रहा है।अधिकतम लोगो के पास कम से कम परिवार के खाने भर का खेत है या फिर बहुत लोग बटैयादार के तौर पर खेत मे बुवाई ज़रूर करेंगे।हर एक गाँव मे रोजमर्रा की ज़रूरत के लिए सैकड़ों लोगो के पास रोज़गार होगा।गाँव तो पहले से ही रोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी निश्चित रूप से करता रहा है औऱ ये धान की रोपनी उसका बेहतरीन उदाहरण है।
उम्मीद है की हम सब मिलकर प्रायस करेंगे कि अधिकतर लोगों को गाँव मे ही रोजगार मिले और हमे अपने गाँव से दूर ना जाना पड़े।गोरखपुर के सांसद Ravi Kishan जी को भी याद दिलाना चाहूँगा की जिस भोजपुरी फ़िल्म सिटी की बात आप चुनाव के समय कर रहे थे कही ऐसा ना हो कि अगली बार वोट माँगते समय फ़िर से फ़िल्म सिटी के सुनहरे सपनों को ही दिखाना पड़े।मुझे लगता है कि ये बिल्कुल सही समय है जब इस दिशा में भी काम आगे बढ़ जाना चाहिए क्यो की फ़िल्म सिटी स्थापित होने से केवल एक्टिंग के शौकीन ही नही बल्कि पूर्वांचल के हज़ारो लोगो को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से अपना व्यापार करने तथा रोजगार तलाशने में सहूलियत होगी।@Ravikishan जी से उम्मीद है कि कोरोना का प्रकोप कम होते ही आप फ़िल्म सिटी के लिए अपने तरफ से ना सिर्फ पूरा प्रयास करेंगे बल्कि इसके लिए गोरखपुर में करोड़ों का निवेश भी कराने में सफल होंगे।

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