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108 और 102 Ambulance कर्मचारियों को कौन प्रताड़ित कर रहा है और सरकार क्यों चुप है?

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सर ऐसा है एक कृपा कीजिए। आप एक आदेश पारित कर दीजिए जिसमे कहा गया हो कि राज्य के नागरिकों की कोई भी जिम्मेदारी सरकार नहीं लेगी। इससे आपके आत्म निर्भर वाले योजना को बल भी मिलेगा और आम जनता खुद रास्ता ढूंढेंगी की कैसे उसे अपनी जिंदगी जीनी है।  यह सब लिखने के लिए हम मजबूर हैं क्योंकि हमारे व्हाट्सएप पर पिछले कई दिनों से लगातार एक फोटो भेजा जा रहा है और बताया जा रहा है कि फोटो में जो व्यक्ति दिख रहा है उसने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है। पूरा मामला राज्य के 102 और 108 एंबुलेंस सेवा से जुड़ा हुआ है और सबसे जरूरी यह है कि हमने खुद इसके पहले भी इससे जुड़े कर्मचारियों को लेकर कई वीडियो बनाया है। जब लखनऊ में इनका प्रदर्शन चल रहा था तब भी हमने आवाज उठाया था और आज जब सरकार के ठेकेदारी प्रथा में फंस कर कोई व्यक्ति फांसी लगाकर अपनी जान देता है तब भी हम आवाज उठा रहे हैं। हमको चिल्लाने का कोई पैसा नहीं दे रहा है, हम सिर्फ इसलिए चिल्ला रहे हैं क्योंकि सरकार यह सब कुछ देख कर अपना मुंह बंद कर चुकी है और अब अगर हम भी चुप हो जाएंगे तो फिर उनकी बातों को कौन सुनेगा? सरकारी अधिकारियों और सरकार में बैठे मंत्

कब मिलेगा कांग्रेस को गैर गांधी अध्यक्ष?

 नमस्कार दोस्तों,काँग्रेस पार्टी,नेताओं द्वारा लिखी गयी चिट्ठी,काँग्रेस वर्किंग कमेटी(CWC) और कांग्रेस के कुछ बड़े नेता।इन सबका जिक्र पिछले 1-2 दिनों से काफ़ी तेज हो गया है।आज के वीडियो में इसी मुद्दे पर बात करेंगे।साथ ही बात करेंगे की कब से कांग्रेस पार्टी को गैर गाँधी अध्यक्ष नही मिला है और आगे क्या उम्मीद है? फिलहाल तो कांग्रेस पार्टी ने अगले 6 महीने के लिए इस प्रश्न को एक तरह से खत्म ही कर दिया लेकिन फ़िर भी 6 महीने बाद क्या होने की उम्मीद है उसकी चर्चा आज से ही हो रही है।ये बात तो लगभग तय है की कांग्रेस की कमान संभालने वाला या तो राहुल और सोनिया का विश्वासपात्र होगा या फिर इनके अपने परिवार से होगा।कुछ ऐसे नाम जो गाँधी-नेहरू परिवार के बाहर से है और जो पिछले 2 दिन में काफ़ी तेजी से ऊपर आए उनमे से पहला नाम है-मुकुल वासनिक।आपको याद होगा जब 2019 में लोकसभा का चुनाव हारने के बाद राहुल गाँधी ने इस्तीफ़ा दिया तब भी मुकुल वासनिक का नाम अध्यक्ष पद के लिए सबसे अहम माना जा रहा था।इसके दो प्रमुख कारण है सबसे पहला यह की मुकुल वासनिक केंद्रीय मंत्री और लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता रह चुके है

पेंटिंग,रिया और सुशान्त!आख़िर रिश्ता क्या है?

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क्या किसी एक तस्वीर से किसी का हाव भाव बदल सकता है?रिया चक्रवर्ती के अनुसार सुशांत मानशिक रूप से बीमार थे।रिया ने पूछताछ में बताया है की जब वे सुशांत के साथ इटली टूर पर गयी थी तो वहाँ वे एक पुराने होटल में रुके थे।होटल करीब 600 साल पुराना है।होटल इटली के फ्लोरेंस शहर में स्थित है।रिया ने बताया की सुशान्त के आलावा इस ट्रिप पर उनके साथ शोविक भी था।रिया ने बताया है की होटल के दीवार पर एक तस्वीर लगी हुई थी।तस्वीर में कोई राक्षस अपने ही बच्चे को खाता दिख रहा है।रिया के अनुसार जब सुशान्त ने इस तस्वीर को देखा तो वे थोड़ा असहज हो गए।रिया अपने भाई शोविक के कमरे में गयी थी और जब वो वापस आयी तो सुशान्त को देख कर चौक गयी।सुशान्त हाथों में रुद्राक्ष की माला लिए कुछ मंत्र पढ़ रहे थे।रिया के अनुसार इसने सुशान्त को इस दिन से पहले कभी भी इस रूप में नही देखा था।उसने सुशान्त से इसके बारे में पूछा तो सुशान्त ने बताया की वो इस पेंटिंग के असली कैरेक्टर्स को देख पा रहे है।सुशान्त को पेंटिंग्स से जुड़ी अजीबोगरीब चीजे दिखाई देने लगी थी हालाँकि रिया ने सुशान्त से कहा की ये सिर्फ इनका भ्रम है।उस रात को

13 साल की मासूम ने क्या बिगाड़ा था?

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 वो अभी 13 साल की थी।उसने तो अब ज़िन्दगी को समझना शुरू किया था और उसके साथ जो कुछ हुआ शायद उसे पता भी नही होगा की इस दुनिया में ऐसा भी कुछ होता है।वो तो ये समझ भी नही पा रही होगी की ये सब कुछ उसके साथ क्यो हो रहा है?आख़िर किसी का क्या बिगाड़ सकती है एक 13 साल की मासूम लड़की? आज सवाल आप खुद से पूछिये?आज सवाल पूरा समाज खुद से पूछे?आज हम भी सवाल अपने आप से पूछेंगे!क्या कभी ऐसा दिन आएगा जब हमारी बहन-बेटियां अमेरिका के तरह रात को अकेले रेस्टोरेंट में खाना खाने चली जाए?अजी छोड़िये भाई साहब ये कैसा बेहूदा सवाल है?यहाँ हम दिन में सुरक्षा की गारंटी नही दे रहे है और आप रात की बात कर रहे है! आज सवाल बुलंदशहर के डीएम साहब से भी रहेगा।डीएम साहब अब आप ये बताइयेगा की हम कैसे मान ले की सुदीक्षा के साथ उस दिन छेड़छाड़ नही हुई थी?जब छोटी सी मासूम बच्ची को लोग नही छोड़ रहे है तो फ़िर सुदीक्षा को ये लोग क्यो छोड़ देंगे? अब आप एक बार वो समय याद कीजिये जब रेप को लेकर देश में नई कानून लागू हुई थी।जिसमे फाँसी तक की सज़ा का प्रावधान है।जब यह कानून बनाया गया तब हमारी सरकारों ने तमाम तरह की बाते कही लेकिन अफ़सोस है की वो सि

गाँव से ही बनेगा भारत आत्मनिर्भर

अब शहर से गाँव की तरफ चल ही दिए है तो अपने मन में ये ठान लीजिए कि जो सेठ लोग शहर में बड़ी-बड़ी फैक्टरियों के मालिक बन कर बैठे है उनको गाँव मे निवेश के लिए मजबूर करना है।हमे पता है कि ये काम इतना आसान नही है लेकिन नामुमकिन भी नही है।किसी भी फैक्ट्री को चलाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण योगदान होता है सस्ता लेबर का औऱ जब आप वापस से बड़े शहरों का रुख नही करेंगे तो गाँव के बारे में सोचना उनकी मजबूरी हो जाएगी।आपका काम गाँव में मेहनत करने से भी चल जाएगा।भले आधुनिक उपभोग की वस्तुओं के खरीदने भर की कमाई ना हो लेकिन आप भूखे भी नही मरेंगे।आज भी आप शहर से बस इसी लिए तो भाग रहे है क्यो की आपको पता है चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन गाँव आपको भुखमरी से बचा लेगा।आज गाँव मे 'हल्दीराम' और 'बिकानो' कि नमकीन मिल रही है लेकिन जब हम छोटे थे तब 'राजा' और 'अनमोल' जैसे लोकल ब्रांड्स की नमकीन खाते थे।ये जो 'राजा' और 'अनमोल' के नमकीन थे,ये गाँव के आत्मनिर्भर होने की कहानी कहते थे क्योकि इनकी पैकिंग से लेकर बनाने तक का काम लोकल बाजार में होता था और जब लोकल मार्केट में कोई उद्य

भारत और नेपाल

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नेपाल और भारत के बीच जो कुछ चल रहा है वो बस एक प्रयोजित योजना है।आप बस सोशल मीडिया पर अपने संयम को बरकरार रखे।ग़ुस्से में कुछ भी गलत ना लिखे जिससे नेपालियों को तकलीफ़ हो क्यो की ये सिर्फ और सिर्फ कम्युनिस्टों द्वारा तय प्रोपेगेंडा का एक हिस्सा है।नेपाल कभी हमसे अलग था ही नही ना अब है।नेपाल और नेपाल के लोग हमेशा से हमारे अपने थे और अपने ही रहेंगे।हमारे देश की सुरक्षा से लेकर ना जाने हमारे कितने सांस्कृतिक विरासत का नेपाल सदियों से संरक्षण करता रहा है।आप नेपाल के प्रधानमंत्री पर गौर करिए।वे वही शर्मा जी है जो वामपंथ का झण्डा ले कर पूरे नेपाल को अपने पैरों तले रौंदते फिरते है और वामपंथ चाहें अपनो का सगा हो या ना हो लेकिन चीन का सगा ज़रूर रहता है।आप इन्तेजार कीजिये नेपाल में सरकार परिवर्तन का।आप इन्तेजार कीजिये नेपाल में किसी दक्षिणपंथी पार्टी के सत्ता में आने का औऱ अगर नेपाल पर ज़्यादा गुस्सा आ रहा हो तो गोरखा की कुर्बानियों को गूगल पर जा के पढ़ लीजिए आपका गुस्सा शांत हो जाएगा। आप याद रखिये की ये वही केपी ओली शर्मा है जो नेपाल के हिन्दू राष्ट्र वाले सवाल पर ऐसे मुँह बनाते है जैसे किसी ने

डार्क हॉर्स-एक अनकही दास्तां/पुस्तक समीक्षा

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            "पुस्तक समीक्षा" 'डार्क हॉर्स-एक अनकही दास्तां' लेखक-नीलोत्पल मृणाल पुरुस्कार-साहित्य अकादमी युवा पुरुस्कार दैनिक जागरण-नील्सन बुक्सकैन बेस्ट सेलर्स-(फिक्शन)2019,जुलाई-सिंतबर मोहित कुमार सिंह 8 अप्रैल 2020 ये पुस्तक हिंदी पट्टी के छात्रों को बेहद पसंद आ सकती है क्यो की इसमें विशेष रूप से इनके संघर्ष की दास्तां सुनाई गई है।अगर आप सत्य व्यास के उपन्यासों से परिचित है तो पात्रों की भाषा वही है।लेखक ने पुस्तक में मुखर्जी नगर के छात्र जीवन को हूबहू उतारने का प्रयास किया है और काफी हद तक सफल भी रहा है।अगर आप दिल्ली दरबार,बनारस टॉकीज,बागी बलिया जैसे उपन्यासों को पढ़ चुके है तो आपको ज़्यादा कुछ नया नही लगने वाला है।हालांकि लोक सेवा आयोग के परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्रों के दिल को छू लेने में सफल हो सकता है। ये पुस्तक बिहार के भागलपुर से शुरू होकर दिल्ली के मुखर्जी नगर में पहुँचती है।उपन्यास के सारे पात्र पूर्वांचल के ही है इसीलिए इसकी भाषा काफ़ी हद तक बनारस के ठेठपन और अखड़पन का एहसास कराती है।'इ रयवा को क्या हो गया अचानक।अभी तो परमा